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जैसे हम घर की सफाई कर लक्ष्मी का स्वागत करते हैं, वैसे ही जीवन से भी अनुपयोगी बोझ हटाएं। यह आत्ममंथन और त्याग की प्रक्रिया न केवल मन को हल्का करती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शांत, विवादरहित विरासत छोड़ जाती है।

हाल ही में संगीत जगत के दिग्गज पंडित छन्नूलाल मिश्रा के निधन के बाद उनके परिवार में विरासत को लेकर जो कलह देखने को मिली, वह हमारे समाज के लिए एक गंभीर चिंतन का विषय है। भाई-बहन अलग-अलग स्थानों पर तेरहवीं करने की बात कर रहे हैं, एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने जीवनकाल में ही ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं जिससे हमारे जाने के बाद हमारे प्रियजनों में कोई विवाद न हो? हल्का होना सिर्फ सामान से हल्का होना भी नहीं है।  उनमें ज़िम्मेदारियाँ ,सांसारिक वैभव , ज़मीन जायदाद का स्पष्ट बंटवारा , दान या उपयोग तय करना भी शामिल है।

हिंदू दर्शन में जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। वानप्रस्थ का अर्थ है ‘वन की ओर प्रस्थान’ – यह वह समय है जब व्यक्ति धीरे-धीरे सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने लगता है। जैसा कि इतिहासकार नंदिता कृष्णा कहती हैं, “वानप्रस्थ का शाब्दिक अर्थ वन जाना नहीं, बल्कि जीवन को सरल बनाना है।”

गवद्गीता इस विचार को और गहराई देती है। श्रीकृष्ण कहते हैं,“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय” (२.४८), अर्थात कर्म करो, परंतु फल की आसक्ति छोड़ दो। इसी भाव में ‘मृत्यु पूर्व सफाई’ का सार है,मोह त्यागकर जीवन को हल्का करना। गीता में एक और श्लोक है,“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि” (२.२२), जैसे हम पुराने वस्त्र त्याग कर नए धारण करते हैं, वैसे ही आत्मा शरीर बदलती है। यह समझ हमें मृत्यु के भय से मुक्त करती है और त्याग को जीवन का उत्सव बना देती है।

अभी पंडित छन्नूलाल मिश्र उनके गौरवशाली और विरासत के बाद बच्चों में अलगाव के बारे में सोच ही रही थी , की मेरी नज़र  मार्गरेटा मैग्नुसन की किताब ‘दि जेंटल आर्ट ऑफ़ स्वीडिश डेथ क्लीनिंग ‘पर आधारित एक लेख पर पड़ी।  स्वीडन में इसे ‘döstädning’ कहा जाता है – यानी मृत्यु से पहले अपने जीवन को सरल और साफ करना।मार्गरेट  ने अपनी पुस्तक में इसे समझाया है। लेकिन यह विचार नया नहीं है। हमारी भारतीय संस्कृति के मूल में इसका उल्लेख जगह जगह मिलता है ।

जापान में इससे ही मिलती-जुलती एक परंपरा है जिसे ‘दानशारी’ कहा जाता है। यह ज़ेन दर्शन पर आधारित है और जीवन से अनावश्यक बोझ हटाने की प्रेरणा देती है। ‘दान’ यानी बेकार चीज़ों को ना कहना, ‘शा’ यानी अनुपयोगी वस्तुओं को त्यागना और ‘री’ यानी आसक्ति से मुक्ति पाना,यह अभ्यास मन की शांति और सरल जीवन का मार्ग दिखाता है।

व्यावहारिक सुझाव

१. मानसिक तैयारी
सबसे पहले अपने मन को तैयार करें कि यह प्रक्रिया मृत्यु से जुड़ी नहीं, बल्कि जीवन को हल्का और व्यवस्थित बनाने की है। इसे एक आत्ममंथन के रूप में देखें,जैसे पुराने बोझ को उतारकर नई ऊर्जा पाना। उदाहरण के लिए, अनावश्यक वस्तुओं को हटाने से घर और मन दोनों में सुकून महसूस होता है।

२. क्रमबद्ध शुरुआत
सफाई की शुरुआत छोटे कदमों से करें:जैसे एक कमरे, एक अलमारी या एक दराज़ से। एक साथ सबकुछ करने की कोशिश न करें, वरना थकान और उलझन बढ़ेगी। उदाहरण के लिए, पहले किताबें या कपड़े छाँटें, फिर अगले सप्ताह पुराने दस्तावेज़ या शोपीस पर ध्यान दें। धीरे-धीरे यह प्रक्रिया सहज बन जाएगी।

३. तीन श्रेणियां बनाएं
अपनी वस्तुओं को तीन हिस्सों में बाँटें—रोज़मर्रा की चीज़ें जिन्हें रखना ज़रूरी है, यादों से जुड़ी वस्तुएँ जिन्हें आप डिजिटल रूप में सहेज सकते हैं, और वे चीज़ें जो वर्षों से अनुपयोगी हैं, जिन्हें दान या रीसायकल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, पुराने कपड़े किसी ज़रूरतमंद को देना न केवल स्थान खाली करता है, बल्कि सुख भी देता है।

४. परिवार से संवाद
इस प्रक्रिया में परिवार को शामिल करें। अपनी इच्छाओं, संपत्ति या वस्तुओं के वितरण को पहले ही स्पष्ट रूप से बताएं। इससे भविष्य में किसी प्रकार का भ्रम या विवाद नहीं रहेगा। उदाहरण के लिए, अपने बच्चों या रिश्तेदारों को पहले से बता दें कि कौन-सी वस्तु या स्मृति आप उन्हें देना चाहते हैं।

५. जीवनकाल में ही बाँटें
जो वस्तुएं किसी को प्रसन्नता या उपयोग दे सकती हैं, उन्हें जीवन में ही बांट देना सबसे अच्छा उपहार है। इससे आप उनकी खुशी देख भी सकते हैं और अपने मन का बोझ भी हल्का करते हैं। उदाहरण के लिए, परिवार की पुरानी ज्वेलरी या किताबें अपने बच्चों या मित्रों को प्रेमपूर्वक भेंट करें।

मैं सोच रही हूँ कि अब जब कल से त्यौहारों का सिलसिला शुरू हो रहा , घर में उत्सवों की तैयारी है , तब मैं किसी बीमा कंपनी के एजेंट की तरह ‘मौत और उसके बाद ‘ की बात क्यों कर रही ? पर , फिर दुसरे ही पल लग रहा कि हर साल जब हम दिवाली की साफ़ सफाई करते हैं तो लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी होती है , नया सामान आता है , पुराना बेकार सामान साफ़ होता है।  तो क्यों न जीवन संध्या के द्वार पर पहुंचकर किश्तों में हर दिवाली हम ज़रा सी ‘डेथ क्लीनिंग भी कर लें ‘, जीवन भर का मोह एक झटके में कहाँ जा पायेगा?हर साल , थोड़ा थोड़ा ही सही।

मनोचिकित्सक डॉ. एन. रंगराजन कहते हैं, “यह एक मुक्तिदायक अनुभव है। आप अपने जीवन पर चिंतन करते हैं, और यह खुशी आगे बढ़ाते हैं।”

‘मृत्यु पूर्व सफाई’ हमें सिखाती है कि “छोड़ना” भी एक कला है। यह केवल भौतिक वस्तुओं का त्याग नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विकास की यात्रा है। जब हम अपने जीवन को सरल और स्पष्ट बनाते हैं, तो न केवल हमारा मन हल्का होता है, बल्कि हम अपने प्रियजनों के लिए एक स्वच्छ विरासत छोड़ जाते हैं – बिना किसी कलह, बिना किसी विवाद के।

पंडित छन्नूलाल मिश्रा जैसी घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि समय रहते अपने जीवन को व्यवस्थित करना न केवल व्यावहारिक बुद्धिमत्ता है, बल्कि आध्यात्मिक साधना भी है। यह हमारे प्राचीन ऋषियों की उस शिक्षा का आधुनिक रूप है जो कहती है  “संसार में रहो, लेकिन संसार तुममें न रहे।

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