
आज दुबई के मैदान में सिर्फ दो क्रिकेट टीमें नहीं उतरीं हैं। आज वहां दो तरह के द्वंद्व है। एक तरफ वो है जिसका धर्म ही क्रिकेट है – जो सोता, पहनता, खाता, बोलता क्रिकेट है। जिसके लिए सचिन का छक्का पवित्र है, धोनी का हेलिकॉप्टर शॉट मंत्र है, विराट की आक्रामकता आराध्य है। इसके लिए आज का मैच दीवाली है, होली है, त्योहार है। दूसरी तरफ वो है जिसने खुद या तो देश की रक्षा के लिए अपने परिवार के लोगों का बलिदान दिया है, या बलिदान देने को तैयार है। जिसे लगता है कि सिर्फ बदला लेने भर से खेल व्यवहार चालू नहीं हो सकते। जिसके लिए पहलगाम में गई जानों की राख अभी भी गर्म है, अभी भी जलती है, अभी भी सुलगती रहती है रात-दिन।
भावनगर के सावन परमार के शब्द आज भी कानों में गूंज रहे हैं – “अगर आप मैच खेलना चाहते हैं, तो मेरे 16 साल के भाई को वापस ले आइए, जिसे इतनी गोलियां लगीं।” ये सिर्फ एक युवा की बात नहीं है। ये उन हजारों परिवारों की चीख है जिन्होंने कभी आतंक की मार झेली है। ये उन मांओं का रुदन है जो अपने बेटों को कफन में लिपटा देख चुकी हैं। ये उन बहनों का मातम है जो अपने भाइयों के लिए राखी खरीद कर रख देती हैं, लेकिन बांधने वाला कोई नहीं आता। 22 अप्रैल 2025 को जब पहलगाम में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या हुई, तो पूरा देश कांप गया था। माताओं के सीने फट गए, बाप की मूंछें झुक गईं, बहनों के सिंदूर उड़ गए। फिर ऑपरेशन सिंदूर चला, आतंकियों को मार गिराया गया, सिंधु जल संधि पर रोक लगाई गई। लगा था कि इस बार सबक मिल गया है।
लेकिन आज फिर वही पुराना ड्रामा – जैसे कुछ हुआ ही न हो, जैसे कोई मरा ही न हो, जैसे कोई रोया ही न हो। मुनाफे की मशीनरी और खून का हिसाब-किताब टेलीविजन की दुनिया आज जश्न मना रही है। स्टार स्पोर्ट्स से लेकर सोनी तक, हर ब्रॉडकास्टर जानता है कि आज सोने की खान है। विज्ञापनदाता अरबों रुपये फूंकने को तैयार हैं। प्रति मिनट की विज्ञापन दर आसमान छू रही है। फैंटेसी क्रिकेट ऐप्स ने करोड़ों का दांव लगाया है। सोशल मीडिया पर #INDvsPAK ट्रेंड कर रहा है और इसके पीछे की मार्केटिंग मशीनरी 24 घंटे, 365 दिन काम करती रहती है। लेकिन इस चमकीली दुनिया के पीछे छुपा है वो सच जिसकी आंखें आज भी नम हैं।
जब पैसा बोलता है, तो दर्द की आवाज दब जाती है। जब TRP की रेस शुरू होती है, तो शहीदों की स्मृति धुंधली हो जाती है। जब स्पॉन्सरशिप की बात आती है, तो बलिदान की बात गायब हो जाती है। आज के इस मैच को देखिए तो लगता है कि ये सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एक बहुअरबीय बिजनेस मॉडल है। हर बॉल पर करोड़ों की बारिश, हर छक्के पर अरबों का नाच, हर विकेट पर मुनाफे की तालियां। लेकिन इस सारे हुड़दंग के बीच भूल जाते हैं उन 26 जानों की कीमत जो पहलगाम में चली गईं। भूल जाते हैं उन मांओं के आंसू जो आज भी नहीं सूखे। भूल जाते हैं उन बाप की हिचकियां जो आज भी नहीं थमीं। क्या हर ICC इवेंट में हमें अपनी संवेदनाओं का बलिदान देना होगा? क्या हर बार खेल के नाम पर सब कुछ माफ हो जाता है? क्या TRP के लिए हम अपनी अस्मिता भी बेच देंगे? ये सवाल आज हर भारतीय के मन में घूम रहे हैं, लेकिन इसका जवाब कौन देगा?
आंसू और तालियों के बीच फंसा देश
1947 से अब तक का इतिहास उठा कर देखिए – तीन युद्ध, कारगिल की लड़ाई, उरी का हमला, पुलवामा का दर्द। हर बार लगता है कि इस बार तो सबक मिल गया। हर बार लगता है कि अब तो रिश्ते टूट जाएंगे। लेकिन फिर कुछ महीने बाद वही पुराना खेल – वही मित्रता का ढोंग, वही भाईचारे का नाटक, वही खेल भावना का जुमला। आज जब पहली गेंद फेंकी जाएगी, तो स्टेडियम में तालियां गूंजेंगी। टीवी स्क्रीन पर रंग-बिरंगे विज्ञापन चमकेंगे। कमेंटेटर्स खुशी में चिल्लाएंगे। फैन्स नाचेंगे-कूदेंगे। लेकिन कहीं दूर गुजरात के भावनगर में एक युवा अपने 16 साल के भाई की तस्वीर के सामने बैठा सिसक रहा होगा। कहीं कश्मीर में कोई मां अपने बेटे की वर्दी सूंघ रही होगी। कहीं कोई बहन अपने भाई के लिए खरीदी राखी को आंसुओं से भिगो रही होगी। यही है आज का सबसे बड़ा द्वंद्व – तालियों और आंसुओं के बीच का संघर्ष। एक तरफ हैं वो लोग जो कहते हैं कि खेल खेल है, राजनीति अलग। दूसरी तरफ हैं वो लोग जो कहते हैं कि जब तक खून का हिसाब नहीं चुकता, तब तक खेल कैसा?
अर्थ बनाम भाव की लड़ाई
आज का मैच सिर्फ भारत बनाम पाकिस्तान नहीं है। आज का मैच अर्थ बनाम भाव की लड़ाई है। आज का मैच आंसू बनाम मुनाफे का संघर्ष है। आज का मैच उन दो मानसिकताओं के बीच का युद्ध है जो इस देश में हमेशा से चलता आया है। एक मानसिकता कहती है – भूल जाओ सब कुछ, खेल देखो, मजे करो, TRP बढ़ाओ, पैसा कमाओ। दूसरी मानसिकता कहती है – याद रखो सब कुछ, भूलो मत कुछ भी, जब तक इंसाफ नहीं मिलता, तब तक खेल भी नहीं। पहली मानसिकता के लिए आज त्योहार है। दूसरी मानसिकता के लिए आज मातम है। पहली मानसिकता आज जीत का जश्न मनाना चाहती है। दूसरी मानसिकता आज शहीदों को श्रद्धांजलि देना चाहती है। लेकिन सवाल ये है कि इन दोनों के बीच जीत किसकी होगी? क्या अर्थ भाव पर भारी पड़ेगा? क्या मुनाफा आंसुओं से बड़ा साबित होगा? क्या TRP शहीदों की स्मृति से ज्यादा कीमती है? जब आज रात मैच खत्म होगा और परिणाम आएगा, तो एक और परिणाम भी निकलेगा। वो परिणाम होगा इस बात का कि हम कैसे लोग हैं। वो जो सब कुछ भूल जाते हैं, या वो जो कुछ नहीं भूलते। वो जो हर चीज को पैसे से तौलते हैं, या वो जो कुछ चीजों की कीमत पैसे से नहीं लगाते। आज का ये द्वंद्व सिर्फ दुबई के मैदान में नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में चल रहा है। और इस द्वंद्व का फैसला करना है कि हमारी पहचान क्या है – अर्थ की या भाव की।
Newstrust जिंदाबाद,शेफाली जिंदाबाद