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नेपाल में कई सौ करोड़ की लागत से अर्ध बना नया संसद भवन धू धू करके जलता दिखा , हवाई अड्डा धधक रहा है, नेताओं के आलीशान बंगले राख हो चुके हैं। प्रधानमंत्री सत्ता छोड़ कर नेपाल छोड़ने की जुगत में हैं । धुएँ से ढकी नेपाल की सड़कों पर जनरेशन ज़ी पारंपरिक सत्ता के लिए नारे नहीं लगा रही, उनकी मांग है – बालेंद्र “बालेन”शाह बनें अंतरिम प्रधान मंत्री ।इंजीनियर-रैपर-मेयर से लोकनायक बने 33 वर्षीय बालेन शाह केवल राजनीतिक बदलाव का प्रतीक नहीं हैं, वे भ्रष्ट अभिजात वर्ग से वैधता छीनने वाले डिजिटल युग  और नेपाल के जेनेरशन ज़ी के रॉबिन हुड हैं।

आँकड़ों में विद्रोह, गणित में क्रांति

जब प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने हिंसक झड़पों में 19 मौतों और 300 से अधिक घायलों के बाद इस्तीफ़ा दिया, तब यह सिर्फ़ आंकड़े नहीं थे। यह पीढ़ियों के बीच  की खाई का खुला सबूत था।“जनरेशन ज़ी का विरोध” कहलाए इन प्रदर्शनों में लगभग 100% प्रदर्शनकारी 28 वर्ष से कम उम्र के थे। और इन्हीं में 33 वर्षीय काठमांडू के मेयर बालेन शाह एक संभावित उत्तराधिकारी के रूप में उभरे। यह भीड़ की मानसिकता नहीं, बल्कि एक जनसांख्यिकीय नियति थी,जो वास्तविक समय में राजनीतिक पुनर्संरेखण कर रही थी।

रैपर और इंजीनियर के रूप में पहचाने जाने वाले शाह ने 2022 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में काठमांडू का मेयर चुनाव जीतकर पहले से स्थापित  राजनीतिक दलों को चुनौती दी। यह वही है जिसे राजनीति के विद्वान “संस्थागत बाईपास” कहते हैं। यानी ,पारंपरिक सत्ता ढाँचे को दरकिनार कर योग्यता आधारित वैधता हासिल करना।

रॉबिन हुड का नया प्रतिरूप: मिथक से नगर प्रशासन तक

ऐतिहासिक रॉबिन हुड ने ताक़त के बल पर संपत्ति बाँटी थी; डिजिटल युग का बालेन पारदर्शिता के बल पर अवसर बाँट रहा है।उनकी भ्रष्टाचार विरोधी पहलों ने मापने योग्य नगर संपत्तियों को पुनः प्राप्त किया, वहीं उनके बुनियादी ढाँचा प्रोजेक्ट्स ने काठमांडू के मज़दूर वर्ग का जीवनस्तर ठोस रूप से सुधारा।

जहाँ नेपाल की राजनीति वंशानुगत नेटवर्क और संरक्षणवाद पर चलती रही, वहीं बालेन की मेरिट-आधारित प्रगति अवैध सत्ता को सीधी चुनौती है।

ये विरोध प्रदर्शन शुरुआत में सोशल मीडिया बैन के ख़िलाफ़ थे, लेकिन धीरे-धीरे वे भ्रष्टाचार-विरोधी क्रांति में बदल गए। यह दर्शाता है कि जनरेशन ज़ी समझती है कि ,डिजिटल आज़ादी और सरकारी पारदर्शिता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।नेपाल की औसत आयु 25.3 वर्ष है। जब ये युवा “बालेन फॉर पीएम” का नारा लगाते हैं, तो यह केवल हीरो-पूजा नहीं, बल्कि जनसांख्यिकीय लोकतंत्र की मांग है।

संस्थागत बदलाव की इंजीनियरिंग

बालेन की तकनीकी पृष्ठभूमि उन्हें अलग बनाती है। इंजीनियर समस्याओं को तर्क, प्रणाली और मापनीय परिणामों से हल करते हैं—जो नेपाल की पारंपरिक राजनीति में नदारद है। टाइम  मैगज़ीन द्वारा 2023 में मिली पहचान इस तकनीकी दृष्टिकोण को अंतरराष्ट्रीय मान्यता देती है।अब सवाल यह नहीं कि कोई मेयर प्रधानमंत्री बन सकता है या नहीं, सवाल यह है कि क्या नेपाल की संस्थाएँ योग्यता-आधारित नेतृत्व को जगह देने के लिए तैयार हैं?

क्रांति की आग और प्रतीकात्मक विद्रोह

जब पूर्व प्रधानमंत्री ओली का घर जलाया गया, तो यह सिर्फ़ संपत्ति का नाश नहीं था, बल्कि उन प्रतिनिधिक संरचनाओं का ध्वंस था जो जनता का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम रहीं। यह आग अंधी नहीं थी,वो  सटीक थी, भ्रष्ट सत्ता के प्रतीकों को निशाना बनाकर, रचनात्मक नेतृत्व की मांग करती हुई।

यह नेपाल का पहला डेटा-चालित राजनीतिक आंदोलन है। जनरेशन ज़ी केवल सत्ता का विरोध नहीं कर रही, ववो  पारदर्शी प्रक्रियाएँ, मापनीय नतीजे और जवाबदेह नेतृत्व मांग रही हैं।

एल्गोरिदमिक रॉबिन हुड

बालेंद्र शाह केवल एक राजनीतिक विकल्प नहीं, बल्कि पीढ़ीगत संक्रमण का प्रतीक हैं—सिफ़ारिश और वंशानुगत राजनीति से प्रदर्शन और योग्यता आधारित शासन की ओर।उनका सफ़र,रैपर से मेयर और अब संभावित प्रधानमंत्री तक,दर्शाता है कि डिजिटल युग की पीढ़ी राजनीतिक बदलाव को योग्यता, पारदर्शिता और ठोस परिणामों से साधना चाहती है।

नेपाल की सड़कों पर उठती आग ,सिर्फ़ ग़ुस्से से नहीं, बल्कि आकांक्षा से भरी है। यह एक ऐसी पीढ़ी है जो शासन से शोषण नहीं, सेवा चाहती है; रिश्तों से नहीं, बल्कि कौशल से नेतृत्व चाहती है।यह क्रांति केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि कार्यप्रणालीगत है। और बालेन शाह केवल एक उम्मीदवार नहीं, वे उस नए लोकतांत्रिक खाके का ब्लूप्रिंट हैं, जो डिजिटल युग में आकार ले रहा है।

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